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आ यस्मि॑न्त्स॒प्त र॒श्मय॑स्त॒ता य॒ज्ञस्य॑ ने॒तरि॑। म॒नु॒ष्वद्दैव्य॑मष्ट॒मं पोता॒ विश्वं॒ तदि॑न्वति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yasmin sapta raśmayas tatā yajñasya netari | manuṣvad daivyam aṣṭamam potā viśvaṁ tad invati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। यस्मि॑न्। स॒प्त। र॒श्मयः॑। त॒ताः। य॒ज्ञस्य॑। ने॒तरि॑। म॒नु॒ष्वत्। दैव्य॑म्। अ॒ष्ट॒मम्। पोता॑। विश्व॑म्। तत्। इ॒न्व॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:5» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मिन्) जिस (यज्ञस्य) सङ्गम करने के योग्य जगत् के (नेतरि) नायक सविता सूर्यमण्डल में (सप्त) सात (रश्मयः) किरणें (आतताः) विस्तृत हैं उसमें जो (मनुष्वत्) मनुष्य के तुल्य (दैव्यम्) दिव्य रश्मियों में प्रसिद्ध (अष्टमम्) आठवाँ विस्तृत है वह (पोता) शुद्ध करनेवाला (विश्वम्) समस्त जगत् को प्रकाशित करता है और (तत्) उस सूर्यमण्डल को भी (इन्वति) व्याप्त होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सात विध रश्मियोंवाला सूर्य परिमाण से विस्तार को प्राप्त और पवित्र करनेवाला है, उसमें जो चेतन ब्रह्म व्याप्त वर्त्तमान है, वह समस्त सूर्यादिक को व्यवस्था प्राप्त करता =कराता है। जैसे मनुष्य शिल्पक्रिया से अनेक वस्तुओं को बनाते हैं, वैसे जगदीश्वर अखिल संसार का विधान करता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह।

अन्वय:

यस्मिन् यज्ञस्य नेतरि सवितरि सप्त रश्मय आतताः तत्र यन्मनुष्वद्दैव्यमष्टममाततं स पोता विश्वं प्रकाशयति तच्चेन्वति ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (यस्मिन्) (सप्त) (रश्मयः) किरणाः (तताः) विस्तृताः (यज्ञस्य) सङ्गन्तुमर्हस्य जगतः (नेतरि) नायके (मनुष्वत्) मनुष्येण तुल्यम् (दैव्यम्) देवेषु दिव्येषु रश्मिषु भवम् (अष्टमम्) अष्टसङ्ख्यापूरकम् (पोता) शोधकः (विश्वम्) सर्वं जगत् (तत्) (इन्वति) व्याप्नोति ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यः सप्तविधरश्मिः सूर्यः परिमाणेन विस्तीर्णः पवित्रकर्त्ताऽस्ति तत्र यच्चेतनं ब्रह्म व्याप्तं वर्त्तते तत्सर्वं सूर्यादिकं यथावद्व्यवस्थां नयति। यथा मनुष्याः शिल्पक्रियाऽनेकानि वस्तूनि निर्मिमते तथा जगदीश्वरोऽखिलं संसारं विधत्ते ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सात प्रकारच्या किरणांनी युक्त सूर्य परिमाणाने विस्तारलेला व पवित्र करणारा आहे. त्यात जो चेतन ब्रह्म व्याप्त आहे तो सूर्य वगैरे सर्वांची व्यवस्था करतो. जसा माणूस शिल्पक्रियांनी अनेक वस्तू निर्माण करतो तसा जगदीश्वर संपूर्ण जग बनवितो. ॥ २ ॥